अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 की थीम है ‘इंस्पायर इंक्लूजन’
नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी:- (स्वतंत्र पत्रकार)अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आरम्भ अमेरिका व यूरोपीय देशों में पूंजीपतियों व सरकारों के महिलाओं के साथ भेदभाव पूर्ण नीति के विरुद्ध आंन्दोलनों से हुआ है। बीसवीं शताब्दि के प्रारम्भ में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम वेतन पर अधिक समय तक कार्य कराया जाता था। जिसके विरोध में महिलाओं और नव विकसित समाजवादी पार्टियों ने बराबरी की मांग पर अनेक आन्दोलन हुए। एक लम्बे संघर्ष के बाद संसार के अधिकांश देशों में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो जहां सनातन धर्म में महिलाओं का स्थान बहुत उच्च माना जाता हैऔर प्राचीन काल से ही महिलाओं को अपना पति चुनने का अधिकार रहा है।भारत के कुछ भागों में आज भी मातृसत्तात्मक परिवार है।अरुंधति,लोपामुद्रा,मैत्रैयी,गार्गीकौशल्या,सीता,कैकेई,सावित्री,द्रोपदी,रजिया सुल्तान, पद्मनी, मीरा, जीजाबाई, लक्ष्मीबाई, डा.लक्ष्मीसहगल, इंदिरा,सरोजनी नायडू आदि नारियों का स्थान समाज में ऊंचा रहा है।
मनुस्मृति के अध्याय तीन के छप्पनवे श्लोक में नारी की
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रम्यन्ते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया।।
अर्थात-जहां नारियों की पूजा(सम्मान) होती है वहां देवता निवास करते हैं।जहां उनका सम्मान नहीं होता है अर्थात् जहां उनका अपमान होता है वहां सभी यज्ञादि कर्म कोई फल नहीं देते। परन्तु सल्तनत सत्ता,मुगल व अंग्रेजी काल में सामान्य महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
भारत में आजादी के बाद नारियों को वोट का अधिकार देकर उनको पुरुषों के बराबर हक दिया गया। धीरे-धीरे उनके उत्थान व अधिकारों के लिए कानून बने। जिससे सामान्य महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ। वे देश की राष्ट्रपति,राज्यपाल,प्रधानमंत्री आदि पदों पर सुशोभित रही हैं भारत की वर्तमान राष्ट्रपति भी एक महिला ही हैं।
विश्व में कई राष्ट्र ऐसे थे जहां की महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिल पाया था।इस बात को मध्य नजर रखते हुए
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन्1975 को आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता दी। तभी से यह दिवस अंतर्राष्टृरीय स्तर पर महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।
कुछ लोग मानते हैं कि महिला दिवस सबसे पहले 1908 में ब्रिटेन में महिलाओं की संस्था डब्ल्यू.एस.पी.यू.की महिलाओं द्वारा मनाया गया।कुछ लोग मानते हैं कि यह दिवस सबसे पहले अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर 28 फरवरी 1909 को अमेरिका में मनाया गया।सन् 19010 में सोशलिस्ट पार्टी के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन जो डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन में क्लारा जेटकिन नामक महिला ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का सुझाव दिया जिस पर इस सम्मेलन को’इंटरनेशनल कांफ्रेंस आफ वर्किंग वीमेन’ नाम दिया गया। तथा इसे हर वर्ष मनाये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया।
वर्ष 1911में पहली बार अन्तर्राष्टृरीय महिला दिवस मनाया गया।इस दिन यूरोप के आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, और स्विट्जरलैंड में 10 लाख से अधिक लोगों ने महिला अधिकारों के समर्थन में रैलियां निकालीं गयीं।इसी दिन सन् 1917 में रूस की महिलाओं ने रोटी और कपड़े के लिए ऐतिहासिक हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया। हड़ताल का व्यापक असर हुआ। वहां के शासक जार निकोलस द्वितीय को सत्ता छोड़नी पड़ी।अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट का देने का अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कलैण्डर के अनुसार महिलाओं के हड़ताल का निर्णय लेने के दिन 23 फरवरी रविवार का दिन था। जब कि अन्य देशों में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेण्डर के अनुसार उस दिन 08 मार्च था। महिला अधिकारों की मांग को लेकर चलने वाले सतत संघर्षों के परिणाम स्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1977को हर वर्ष 08 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया।तब से यह दिवस लगभग 80 देशों में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। 2011में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सौवीं वर्षगांठ पर अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मार्च 2011 को ‘महिला इतिहास माह’ घोषित किया था।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तीन रंग बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का सूचक, हरा रंग उम्मीद का रंग और सफेद रंग शुद्धता का सूचक है।वर्ष 2024 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अभियान की थीम है ‘इंस्पायर इंक्लूजन’ जिसका अर्थ है समावेशन को प्रेरित करना। हर किसी को हाशिए पर रहनेवाले समुदायों सहित जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं के अद्वितीय दृष्टिकोण और योगदान को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करना।
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यही है कि हम याद रखें कि महिलाओं का बिना किसी भेदभाव के सम्मान करना चाहिए।उन्हें पुरुषों के बराबर ही हक मिलना चाहिए।