महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। WWW.JANSWAR.COM

महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर शत्-शत् नमन।

(अरुणाभ रतूड़ी जनस्वर):- महात्मा ज्योतिबा फुले एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने जीवन को समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानता के खिलाफ संघर्ष करने के लिए समर्पित कर दिया। उनकी जयंती पर, हमें उनके अद्वितीय योगदान और उनकी विरासत को याद करने का अवसर मिलता है।

ज्योतिबा फुले का जीवन और कार्य:- ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के खानवाड़ी में हुआ था। उनके पिता गोविंदराव फुले एक माली थे, और उनकी माता चिमनबाई फुले का निधन ज्योतिबा फुले की आयु एक वर्ष होने से पहले ही हो गया था। ज्योतिबा फुले ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की, क्योंकि उस समय समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं मिल सका था।

नारी शिक्षा और समानता के अधिकार के लिए संघर्ष:- ज्योतिबा फुले ने अपने जीवन को नारी शिक्षा और समानता के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित किया और 1854 में देश की पहली लड़कियों के लिए स्कूल की स्थापना की। उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, और विधवा पुनर्विवाह की कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई।

सत्यशोधक समाज की स्थापना:- ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य शूद्र और अछूत लोगों को न्याय दिलाना और उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाना था। इस संस्था ने पंडित, पुरोहित, और पुजारियों के धार्मिक कार्य में अनिवार्यता का विरोध किया और शूद्रों को शिक्षित बनाने और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए काम किया।

महात्मा की उपाधि:- ज्योतिबा फुले को उनके समाज के लिए त्याग और बलिदान से भरे कार्यों के लिए 1888 में महात्मा की उपाधि दी गई। उनकी मृत्यु 27 नवंबर 1890 को हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।

महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर, हमें उनके अद्वितीय योगदान और उनकी विरासत को याद करने का अवसर मिलता है। उनकी कहानी हमें समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानता के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है। हमें उनकी विरासत को आगे बढ़ाने और समाज को बेहतर बनाने के लिए काम करने का संकल्प लेना चाहिए।