वनभूलपुरा की क्या घटना सरकार व प्रशासन के लिए एक चेतावनी है?
नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी (स्वतंत्र पत्रकार) :- हल्द्वानी के वन भूलपुरा में बसी अवैध बस्ती में बनी मजार व मस्जिद के अतिक्रमण से मुक्त कराने गयी नगरनिगम व पुलिस टीम पर पथराव करना,उन पर पेट्रोल बम फेंकना और उनको घेर कर मारने का प्रयास करना आकस्मिक घटना नहीं हो सकती है।यह कार्य एक सोची समझी सुनियोजित घटना है इसमें कोई संदेह नहीं है।
जिस व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह ने यह षडयंत्र रचा वे बहुत ही बुद्धिमान प्रतीत होते हैं।क्योंकि उन्होंने घटना को परस्थिति जन्य आक्रोश की तरह प्रस्तुत किया जब कि यह एक गोपनीय व सुनियोजित हमला था।जिसका लक्ष्य पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी थे। हो सकता है यह एक प्रयोग रहा हो।क्योंकि उपद्रव कारियों की दाल उत्तर प्रदेश में तो गलती नहीं।इसलिए इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि ऐसे अराजक तत्व उत्तराखण्ड में घुस आये हों तथा उनके तार देश के अन्य भागों के कट्टरवादियों से जुड़े हों।ऊपरी दृष्टि से देखने पर यह घटना अतिक्रमण की प्रतिक्रिया ही लगती है।परन्तु स्वतस्फूर्त घटना में इतनी ईंट पत्थर,पेट्रोलबम आदि तुरत-फुरत नहीं जुटाये जा सकते हैं। जिससे लगता है कि यह एक सोची समझी घटना है।
इस घटना को हम सांप्रदायिकता से तो बिल्कुल नहींं जोड़ सकते।यह घटना पुलिस व प्रशासन के विरुद्ध थी जिस प्रकार पुलिस पर प्रहार हुआ और सौ से अधिक पुलिस कर्मी घायल हो गये थे,जिस प्रकार वनभूलपुरा थाने को घेर कर आग लगाई गयी उससे दो बातें हो सकती थीं। पहली यह कि पुलिस प्रशासन को पंगु कर दूसरे दिन बहुत बड़ी घटना को अंजाम देने की साजिश रही हो।दूसरी यह अपनी शक्ति प्रदर्शन कर सत्ता की थाह लेने की कोशिश रही हो कि जनता द्वारा बलवा करने पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है, परखा होगा। एक कारण यह भी हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व उत्तराखण्ड का माहौल खराब कर इस वर्ग के वोटों को सत्ता पार्टी से दूर करने का प्रयास भी संभव है।यह भी संभव है कि यह घटना प्रदेश की विधानसभा में समान नागरिक संहिता कानून पारित करने,ज्ञानवापी और राम मंदिर निर्माण के विरोधी लोगों के बहकावे का परिणाम हो।घटना के पीछे का सच तो जांच से ही सामने आ सकता है।जो कि मुख्य सचिव द्वारा कुमाऊं मंडल के आयुक्त श्री दीपक रावत को सौपी है।
राज्य के मुखिया ने इस घटना पर जब अति कठोर कदम उठाया,कर्फ्यू लगाने व दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिया और पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की तत्परता दिखाने से दंगों पर नियंत्रण हो गया है।इस घटना से यह बात भी सामने आयी है कि हमारा गुप्तचर तंत्र को इस षड्यंत्र का लेशमात्र भी पता नहीं चला।अगर यह कहा जाय कि हमारा खुफियातंत्र असफल रहा है अतिशयोक्ति नहीं होगी।शायद हमारे खुफियातंत्र को सुधार की आवश्यकता है।इसकी आवश्यकता प्रदेश के मुखिया, मुख्यसचिव व पुलिस महानिदेशक ने भी महसूस की होगी।
अगर प्रदेश में कानून व शान्ति का राज्य स्थिर करना है तो सरकार को व जांच ऐजेंसियों को घटना के पीछे के लोगों को बेनकाब कर कड़ी से कड़ी सजा दिलानी होगी।ताकि एक उदाहरण प्रस्तुत हो सके।सरकार को ग्रामीण अंचलों में आये इन अनचीन्हें,अनचाहे लोगों की पहचान के लिए भी कदम उठाने चाहिए। साथ ही अन्य राज्यों की सीमा के निकट बसे शहरों पर विशेष चौकसी बरतनी चाहिए।ऐसे स्थानों में गुप्तचर तंत्र को बहुत ही सक्रिय रखना होगा ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
सरकार को एक नियम और बनाना चाहिए कि जिस विभाग की भूमि पर अतिक्रमण होता है उस विभाग के मुखिया व कर्मियों अतिक्रमण होते ही प्रशासन, शासन को सूचना न देने पर दण्डित किया जाय। प्रशासन उस पर कार्यवाही न करे तो प्रशासन पर भी दण्ड की व्यवस्था हो ताकि अतिक्रमण हो ही न सके। इस घटना पर नियंत्रण भले ही हो गया हो पर यह बात बहुत ही दुखद है कि इस दुर्घटना में 06 लोगों की अकारण ही मृत्यु हो गयी है। जो कि अत्यन्त दुखद है।सरकार को देखना होगा कि सरकारी सहायता उन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए जो भीड़तंत्र के शिकार हुए हैं।यदि मरने वालों में दंगाई हों तो उन्हें किसी भी प्रकार की राजकीय सहायता नहीं मिलनी चाहिए।
(फोटो-अन्तर्जाल)