सुहागिनें करवाचौथ का निर्जला व्रत पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं। -नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी का संबन्ध जन्म-जन्मान्तर का माना जाता है। भारतीय नारी ने अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए काल को भी चकमा दे दिया था। सत्यवान की पत्नी सावित्री ने यमराज को अपने वाग्जाल में फंसा कर जहां पिता को संतान,अंधे ससुर की नेत्र ज्योति के साथ -साथ राज्य वापस मिलने का वरदान तो लिया ही,स्वयं भी पुत्रवती होने का वरदान मांग कर पति के प्राण वापस करने को विवश कर दिया। ऐसे ही देवी करवा के पति को जब मगरमच्छ ने पकड़ लिया तो उन्होंने उस मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया था। सती के शाप के भय से यमराज को देवी करवा के पति को जीवनदान देना पड़ा। इसीलिए सुहागन स्त्रियां प्रार्थना करती हैं कि हे माता करवा जैसे तुमने अपने पति की मृत्यु से रक्षा की वैसे ही मेरे पति की भी बचाना।
करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।यह व्रत केवल सुहागिनें ही लेती हैं। इस दिन सुहागिनें सुबह उठ कर स्नानादि से निवृत होकर देवताओं को प्रणाम कर इस व्रत को करने का संकल्प लेती हैं।
इस व्रत में चन्द्रमा,शिव,पार्वती,बालगणेश व बाल कार्तिकेय की षोडशोपचार पूजा की जाती है। तांबे के या मिट्टी के बरतन में चावल,उड़द की दाल,सुहाग सामग्री और दक्षिणा रखकर किसी बड़ी सुहागन स्त्री को उसके पांव छू कर दे दी जाती हैं।
सायंकाल में किसी पंडित से वीरवती की कथा का श्रवण करते हैं।चन्द्रोदय पर छलनी से उन्हें देख कर उनको पूजा व अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पी कर अपना व्रत तोड़ती हैं।
करवाचौथ का व्रत सबसे पहले पार्वती जी ने किया था। फिर देवासुर संग्राम में इसे ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवपत्नियों ने किया था। द्वापर में इस व्रत को श्रीकृष्ण की प्रेरणा से द्रोपदी ने किया था।करवाचौथ का व्रत विवाह के बाद कम से कम 18 साल तक करना अनिवार्य रूप से करना चाहिए।अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इसे कुमारी लड़कियां भी कर सकती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की आयु लम्बी होती है तथा वह स्वस्थ रहता है।दाम्पत्य जीवन सुखी व समृद्ध रहता है।
सभी सुहागिनों को करवा चौथ की बधाई।शुभकामनाएं।