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सिरोसिस मरीजों के लिए खुश खबरी- एम्स ने शुरू की ’ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंट’ सुविधा
एम्स ऋषिकेश.31 मई 2024:- क्रोनिक लीवर डिसीज गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। इस बीमारी के निदान के लिए अब एम्स ऋषिकेश में ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंट (टी.आई.पी.एस.) ’टिप्स’ प्रक्रिया की सुविधा भी मिल सकेगी। यह वह प्रक्रिया है जिससे लीवर में होने वाले पोर्टल हाइपरटेंशन को समाप्त कर दिया जाता है और मरीज का लीवर खराब होने से बच जाता है। उत्तराखंड में एम्स ऋषिकेश अकेला ऐसा सरकारी स्वास्थ्य संस्थान है, जहां यह स्वास्थ्य सुविधा शुरू की गई है।
एम्स ऋषिकेश के रेडियोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों ने हाल ही में एक ऐसे रोगी के लीवर का इलाज किया है जो क्रोनिक लीवर डिसीज (सिरोसिस) की गंभीर बीमारी से जूझ रहा था और लीवर खराब हो जाने के कारण उसके पेट में बार बार पानी भरने की समस्या हो रही थी। उत्तरप्रदेश के बिजनौर निवासी इस रोगी की उम्र 40 वर्ष है। तकरीबन एक महीने पहले रोगी ने जब अपनी समस्या ओपीडी के माध्यम से एम्स के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों के सम्मुख रखी तो पता चला कि इस रोगी को लीवर सिरोसिस की बीमारी है। मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने संस्थान के डायग्नोस्टिक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों से समन्वय स्थापित किया।
इस बाबत जानकारी देते हुए संस्थान के रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. उदित चौहान ने बताया कि इस बीमारी की वजह से मरीज की किडनी खराब होने लगी थी और उसका शरीर भी बेहद कमजोर पड़ गया था। उन्होंने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित किसी मरीज के लीवर के इलाज के लिए ’ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंट (टी.आई.पी.एस.) टिप्स की प्रक्रिया एम्स ऋषिकेश में पहली बार अपनाई गई है। उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया बेहद संवेदनशील और जटिल स्तर की थी। प्रक्रिया के दौरान लीवर में रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचने, संक्रमण अथवा चोट लगने का खतरा होता है, लेकिन टीम वर्क से इसे बेहतर ढंग से अंजाम दिया गया। उन्होंने बताया कि मरीज अब स्वस्थ है और 4 दिन तक अस्पताल में रखने के बाद उसे पिछले सप्ताह 23 मई को छुट्टी दे दी गई। टीम में रेडियोलॉजिस्ट डॉ. उदित चौहान के अलावा गैस्ट्रो विभाग के डॉ. आनन्द शर्मा और ऐनस्थेटिक डॉ. वाई.एस. पयाल आदि शामिल थे।
क्या है पोर्टल हाईपरटेंशन
गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के हेड डॉ. रोहित गुप्ता ने बताया कि लीवर ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाता है और उसमें रुकावटें होने लगती हैं तो रक्त आसानी से नहीं बह पाता। इसे पोर्टल हाइपरटेंशन (पोर्टल शिरा का बढ़ा हुआ दबाव और बैकअप) कहा जाता है। इस समस्या से नसें फट सकती हैं और गंभीर रक्तस्राव हो सकता है।
टी.आई.पी.एस. (’टिप्स’) प्रक्रिया
रेडियोलॉजी विभाग की हेड डॉ. अंजुम सैय्यद ने बताया कि यह कोई सर्जिकल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक्स-रे मार्गदर्शन का उपयोग कर इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट द्वारा इस प्रक्रिया को किया जाता है। इस प्रक्रिया में त्वचा के माध्यम से गर्दन की नस में एक कैथेटर (लचीली ट्यूब) डालकर लीवर में टिप्स प्रक्रिया की जाती है। इससे मरीज के पेट, ग्रासनली, आंतों और यकृत की नसों पर दबाव कम हो जाता है।
’’यह सुविधा अभी तक एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और लखनऊ जैसे बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों में ही उपलब्ध थी। उत्तराखंड के किसी सरकारी अस्पताल में इस स्वास्थ्य सुविधा के नहीं होने से राज्य के गरीब लोगों को उपचार कराने के लिए आर्थिक समस्या के अलावा अन्य कई प्रकार की परेशानियां उठानी पड़ती थीं। लेकिन अब एम्स में भी लीवर रोगियों के इलाज के लिए ’ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंट’ प्रक्रिया की सुविधा शुरू कर दी गई है। संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा पहले से ही उपलब्ध है। जल्द ही लीवर प्रत्यारोपण सुविधा भी शुरू कर दी जाएगी। जरूरतमंद रोगियों को चाहिए कि वह एम्स की इन स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाएं और निरोगी रहें।’’