होली सद्भावना का त्यौहार है।लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी।Janswar.com


होली सद्भावना का त्यौहार है


लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
भारत मे वर्ष भर की छ: ऋतुओं में बसन्त को ऋतुराज माना जाता है।इस ऋतु में तीन तिथियों को भारतीय हिन्दू जनता बहुत ही उत्साह से मनाती हैं। जिनमें एक माघ शुक्लपक्ष की पंचमी जो बसंत पंचमी के नाम से जानी जाती है और बसंत के आगमन के रूप में मनायी जाती है।दूसरा त्यौहार फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है जिसे होली कहते हैं। तीसरा त्यौहार नव संवत्सर है।जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आता है।
बसंत  ऋतु से पूर्व शीत ऋतु होती है जिसमें समस्त मानव,पशु,पक्षी,वृक्ष,पेड़-पौधे शीत से त्रस्त रहते हैं।भारत का सबसे कठिन श्रम करने वाले किसान को भी इन दिनों कुछ फुरसत रहती है।खेतों में उगी फसल देख कर उसका मन भी उल्लसित हो जाता है।
      होली एक ऐसा त्यौहार है जिसका नाम सुनकर हर हिन्दू के सम्मुख विविध रंग उभर आते हैंं। शीत लगभग विदा हो जाती है।वातावरण सुखद व समशीतोष्ण होता है। रात दिन भी लगभग बराबर होते  हैं पेड़ पौधों पर नव पल्लव उग आते हैं।अनेक रंगों के पुष्प खिल जाते हैं।प्रकृति में एक उन्माद सा छा जाता है।ऐसे में मनुष्य के  विविध रंगों  से खेलने की इच्छा रखना स्वाभाविक हो जाता है।पक्षियों के कलरव वातावरण में सम्मोहन पैदा करते हैं।आम आदि वृक्ष बौरा जाते हैं।जिनकी सुगंधि से वातावरण सुगंधित हो जाता है।
        होली कब से मनायी जाती है यह बताना असंभव हैं।कहते हैं इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था।जिनके पुत्र मानव कहलाए।उनके ही जन्मदिन के रूप में होली का त्यौहार मनाया जाता है।यह भी माना जाता है कि वैदिक काल में परिवार की सुख समृद्धि के लिए यह त्यौहार ” नवात्रैष्टि यज्ञ” के नाम से विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता था। जिसमें पूर्ण चन्द्र की पूजा करने की परम्परा थी।इस यज्ञ की समाप्ति पर खेतों में अधपके अन्न को लाकर यज्ञ अग्नि में भून कर  प्रसाद के रूप में स्वयं खाया जाता था व दूसरों में भी बांटा जाता था।इस आग में भुने अन्न को होला कहते थे और इस त्यौहार को होलाका कहते थे। इसी का नाम बाद में होली हो गया।
       होली के संबंध में एक प्रसिद्ध कहानी यह है कि दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु ने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया परन्तु उसके पुत्र प्रह्लाद  जो नारद के प्रभाव में था और विष्णु को ईश्वर मानता था ने अपने पिता को ईश्वर मानने से इंकार कर दिया।जिससे नाराज हो कर हिरण्यकश्यपु द्वारा प्रह्लाद को मारने के प्रयास जब असफल हो गये तो उसने उसे मारने के लिए अपनी बहन होलिका का सहायता ली। होलिका को यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी।होलिका ने प्रह्लाद को गोद में बिठा कर स्वयं  लकड़ियों  के ढेर पर बैठ गयी और उस पर आग लगा दी। भगवान विष्णु के प्रभाव से होलिका जल मरी और प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ। कहते हैं इसी कारण यह त्यौहार मनाया जाता  है और इसका नाम होली पड़ गया है।
          कुछ लोग मानते हैं कि होली पर रंग लगाने का प्रचलन श्री कृष्ण ने किया।जब वे अपने काले होने का और राधा के गोरी होने का उलाहना लेकर माता यशोदा के पास गये तो माता ने उन्हें राधा  को मनमाने रंग में रंगने की सलाह दी जिसे श्रीकृष्ण ने मान लिया और सखाओं साथ राधा और गोपियों पर कई रंग लगाये।उन पर रंग घोल कर बरसाये।तभी से होली इसी रूप में मनायी जाने लगी है।
      होली  मनाने का एक बड़ा व वैज्ञानिक कारण यह भी है कि होली से पूर्व मनुष्य गर्म पानी से नहाते हैं।होली के दिन पड़े रंग के छुड़ाने के लिए उन्हें ठंडे पानी से नहाना पड़ता है।अत: उस दिन से अधिकांश लोग ठंडे पानी से नहाना प्रारम्भ कर देते हैं।
 सद्भावना का यह त्यौहार वैसे तो कई दिनों से प्रारम्भ हो जाता है।बसंत पंचमी को उस स्थान पर जहां होली जलाते हैं एक झंडा गाढ दिया जाता है।फाल्गुन पूर्णिमा को इसी स्थान पर होली जलाई जाती है।उसके दूसरे दिन स्त्री,पुरुष सभी  रंग अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं।लोग एक दूसरे को गले लगाते हैं।एक दूसरे पर प्रेम से गुलाल लगाते हैं व रंग डालते हैं।इस दिन के धुलंडी या छरोली भी कहा जाता है।इस त्यौहार का मुख्य पकवान गुझिया है।
      बदलते परिवेश में लोग इस दिन शराब भांग आदि नशीले पदार्थों का सेवन कर मदहोश होकर महिलाओं से अभद्रता कर देते हैं।कुछ लोग गाली गलौज करते हैं।जो कि एक सामाजिक बुराई है।ऐसे लोगों का सामूहिक प्रतिकार करना चाहिए।होली को सद्भाव व प्रेम से ही मनाना चाहिए।
 सभी पाठकों को होली की रंगबिरंगी बधाई।