देह व्यापार के दलदल में न जाने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी अंकिता भंडारी को
-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी (स्वतंत्र पत्रकार)
अभागी अंकिता भण्डारी को कहाँ मालूम था कि वह जिस नौकरी के लिए जा रही है वह नौकरी नही उसकी मौत का परवाना है।उसने सोचा होगा कि गंगाभोगपुर जहां यह रिसॉर्ट था गढवाल के ही एक गाँव में है जहां वह सुरक्षित रह कर नौकरी कर अपने परिवार को आर्थिक मदद कर सकेगी। उसे कहाँ मालूम था कि यह तो एक जाल था वहशी दरिंदों की सोची समझी चाल थी। वे वहशी दरिंदे जो मानवता का मुखैटा लगाए रिसॉर्ट खोले बैठे हैं। ऐसे दानव उससे रिसेपशनिस्ट के साथ साथ देह व्यापार के दल दल में भी डालना चाहते थे।बेचारी फंस गयी उस जाल में। पर उसने अपनी जान दे दी पर उस दलदल में नहीं फंसी।.
सारे घटना क्रम में यह साबित होता है कि ऐसे दानवों को न तो कानून का कोई भय होता है न कोई परवाह।वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। जब बाप सत्ता में हो याने ‘सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का’की कहावत चरितार्थ होती है।ऐसे लोग अपनी हनक पूरी करने के लिए कुछ भी कर गुरजरते हैं।ऐसे लोग समझते हैं कि पुलिस व प्रशासन तो हमारी जेब में है हम जो चाहें कर सकते हैं।सत्ता का बल पीठ पीछे हो तो व्यक्ति कैसे अनर्थ कर देता है यह इस उदाहरण से सम्मुख आ जाता है।ऐसा हुआ भी है यह अपने बाप की सरकारी गाडी़ लेकर लॉकडाउन में बाप की घौंस देकर बिना अनुमति उर्गम पहुँच गया था।शायद बिना कार्यवाही छूट गया।
अभियुक्त के बयान के अनुस घटनाक्रम से लगता है कि इस रिसॉर्ट मालिक ने अंकिता की अस्मत पर हाथ डालना चाहा हो उसके विरोध करने पर उसके साथ जबरदस्ती की गयी हो और उसके द्वारा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने की धमकी ही उसकी मौत का कारण बनी हो।लाश अगर चीला शक्ति नहर में डाल दी गयी हो तो उसे बाहर निकलने में छ: से सात दिन लगते हैं। मैंने चीला में पत्रकारिता करते हुए आठ साल बिताए। हमेशा यह देखा कि बैराज या उसके आसपास डूबी लाशों को चीला इंटेक पहुँचने में छ: सात दिन लगते ही लगते हैं ।
इस मामले में राजस्व पुलिस व प्रशासन की भूमिका भी बहुत शिथिल रही है।18 सितम्बर को गायब हुई अंकिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट परिजनों द्वारा लिखाने पर नहीं लिखी नहीं गयी।राजस्व उप निरीक्षक पर आरोप हा कि उसने परिजनों को काफी देर बिठाए रखा। उनसे अभद्रता की गयी।उनकी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी। रिसॉर्ट मालिक को बचाने के लिए उसे बुलाकर उसके अनुसार एफ आई आर दर्ज की गयी।अगर अंकिता के परिजनों की रिपोर्ट दर्ज होती तो वे अपना शक रिसॉर्ट मालिक पर जाहिर करते उसी से बचने के लिए यह सारा खेल किया गया। पटवारी ने रिसॉर्ट मॉलिक को बचाने की कोई कसर नहीं छोड़ी।अगर अंकिता स्वयं कहीं जाती तो उसके गायब होने की सूचना दूसरे दिन ही दर्ज होनी चाहिए थी। पटवारी को जिलाधिकारी डा.जोगदंडे ने निलंबित कर दिया और लैंसडौन के एसडीएम को जांच दे दी गयी।क्या ऐसा पटवारी सेवा में रखने योग्य है?
जहाँ पटवारी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई वहीं जिले के उच्च प्रशासनिक अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाये।उन्होंने इसे बहुत हल्के में लिया। सोशल मीडिया में तैर रहे एक वीडियो जो शायद 21सितम्बर का है में पौडी में बैठी एक महिला अधिकारी से जब यह मांग की गयी कि इस मामले को रेगुलर पुलिस के सौंपा जाय तो वे कहती नजर आयीं कि उन्होंने एसडीएम से रिपोर्ट मंगायी है।रिपोर्ट ने के बाद ही कार्यवाही होगी।कितना असंवेदनशील जबाब था यह।एक कई लड़की कई दिन से गायब है,रेवन्यू पुलिस रिपोर्ट नहीं लिख रही है अधिकारी मामला रेगुलर पुलिस को नहीं सौंप रहे हैं ऐसी स्थिति में किसी की जान कैसे बचाई जा सकती है? वह तो उस अधिकारी का भला हो जिसने मामले की संवेदनशीलता समझते हुए जांच रेगुलर पुलिस को सौंपी। रेगुलर पुलिस ने अपनी कार्यकुशलता को दर्शाते हुए मामले के महज चौबीस घंटे में सुलझा कर आरेपियों को जेल भेज दिया।क्या ऐसे अधिकारियों के विरद्ध कार्यवाही नहीं होनी चाहिए?
एक प्रश्न और उठ रहा है कि राजाजी टाईगर पार्क के चन्द मीटर दूरी पर रिसॉर्ट बनाने की एन.ओ.सी.किस अधिकारी ने दी है क्या इसकी भी जाँच होगी?
पर एक बात समझ में नहीं आयी कि जब अंकिता का पिता पुलिस थानों मे रिपोर्ट लिखाने गया तो उनकी रिपोर्ट थाने में क्यों नहीं लिखी गयी।मेरी जानकारी के अनुसार है जीरो एफआईआर कहीं भी दर्ज की जा सकती है। तब इन थामों ने जीरे एफ आई आर दर्ज क्यों नहीं की गयी होगी।अगर जीरो एफआईआर दर्ज होने का नियम नहीं है तो ऐसा कहा जाना बन्द होना चाहिए कि जनता जीरो एफ आईआर करा कहीं भी दर्ज कर सकती है।अगर जीरो एफआईआर का नियम है तो पुलिस महीनिदेशक को उन थाने वालों के कान भी ऐंठने चाहिए जिन्होंने उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी?
यद्यपि आरोपियों ने पुलिस के सामने बयान दिया है कि उसने अंकिता की हत्या कर लाश चीला शक्ति नहर में डाल दी।पर कानूनन पुलिस की कस्टडी में दिया बयान तब तक महत्व नहीं रखता जब तक यही बयान न्यायिक अधिकारियों के सम्मुख नहीं दिया जाता।पर आज उस बेटी की लाश मिलने से अब उम्मीद जाग गयी है कि अगर पैरवी ठीक ढंग से होगी तो दोषियों को उनके दुष्कृत्य की सजा मिल सकेगी।
इन अभियुक्तों के पहाड़ी मानसिकता की समझ नहीं थी।वे नहीं जानते कि पहाड़ी महिला गरीबी मे रह लेती है पर अपनी अस्मत नहीं बेचती।उसे पहाड़ियों का शान्त स्वभाव देख कर यह अन्दाज नहीं था कि वे ऐसे मामलों में कितने उग्र हो जाते हैं।पहाड़ियों ने मुलायम सिंह की नहीं सही तो वह बाप के बल पर कूदने वालों की क्या सहेगी।
एक बात और सामनेआयी।इस मामले में क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं एक महिला हैं और स्वयं को यमकेश्वर की बेटी कहते नहीं थकतीं हर घटना में जनता के साथ खड़ी भी मिलती थी और जो घटना स्थल से महज 10 कि.मी.की दूरी पर रहती है ने भी प्ररम्भ में कोई रुचि नहीं ली।इसी प्रकार मुख्यमंत्री का बयान व निर्देश भी तब आया जब पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर दिया। इसके दो कारण हो सकते हैं या तो घटना की जानकारी इन्हें देर में लगी या शायद इसका कारण यह रहा हो सकता है कि आरोपी भाजपा के एक नेता का बेटा था। (अगर प्रदेश के मुखिया को खबर देर में मिलती है तो यह उनके खुफिया तंत्र की नाकामी है।)जब आरोपी की संलिप्ता पूर्ण रूप से सामने आ गयी तो ये बयान आये। और अब सभी सक्रिय हो गये हैं।चलो देर आयस्त दुरुस्त आयद।उस रिसार्ट पर जेसीबी चल गयी। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट ने विनोद आर्य व उनके बड़े बेटे डा.अंकित आर्य को पार्टी से निष्कासित कर दिया है तथा शासन ने रिसॉर्ट मालिक के बड़े भाई को उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष पद से हटा दिया है।
आरोपी के पिता व भाई
राज्य बनने के बाद पहाड़ियों की जमीन के खरीददार बरसाती कुकरमुत्ते की तरह निकल आये जगह जगह पर्यटन के नाम पर होटल,रिसार्ट खुल गये।ऐसे होटल व रिसॉर्टों में लोग मस्ती करने आते हैं शराब,कबाब व शबाब यह तीनों इनको चाहिए। शराब तो अब लगभग हर गाँव में उपलब्ध है।कबाब भी मिल जाता है। कुछ शबाब भी साथ ले कर चलते है।जो नहीं लाते वे होटल प्रबंधन को मनमाने पैसे पर शबाब प्रस्तुत करने को कहते हैं।शायद बहुत पैसे कमाने की चाह में इस दुष्ट ने उस बेटी पर अनुचित दबाब डाला होगा न मानने पर हत्या कर दी होगी।इससे पहले घट्टागाड में एक स्थानीय कुक की भी हत्या हुई थी।क्या जिला प्रशासन ऐसे होटलों रिसॉर्टों ,कैम्पों में काम करने वाले स्थानीय जनता के युवक/युवतियों को सुरक्षा देने के लिए ऐसा सचलदल तैयार नहीं कर सकता जो समय समय पर इनकी जांच कर सके। इस घटना से जनता में इतना आक्रोश है कि जब पुलिस अभियुक्तों को पौड़ी ले जारही थी तो ग्रामीणों ने गाड़ी रोक कर आरोपियों की जमकर पिटाई की उनके कपड़े फाड़़ दिए।
खैर अब मामला कोर्ट में है अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट व पुलिस जांच के जो तथ्य अभियोजन द्वारा कोर्ट में रखे जाएंगे उसी आधार पर फैसला होगा।दोषियों को सजा मिलने में अभी देर है।