प्रकृति के उत्साह और उमंग का त्योहार है वसंत पंचमी।
नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी (स्वतंत्र पत्रकार):- भारतीय संवत्सर में छ: ऋतुएँ होती हैं। जो ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर और वसंत के नाम से जाना जाता है। वसंत ऋतु में सभी ऋतुओं में ऋतुराज कहा जाता है। स्प्रिंग को सीज़नराज कहते हैं क्योंकि स्प्रिंग में पूरी रचना में जो नया उल्लास,उत्साह और सैंजन शैडो होता है वह अन्य सीज़न में दृष्टिगोचर नहीं होता है।
वसंत ऋतु का आगमन माघ शुक्लपक्ष की पंचमी से होता है। वसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह समय शीत ऋतु की विदाई और ग्रिम के आगमन का समय है। शीत ऋतु में सूर्यदेव की किरणें उगती हैं। शरीर को कंपकंपी बनाने वाली वायु भी सुखद हो जाती है। उत्तर भारत में लगभग सम शीतोष्ण मौसम में शीतकाल में पतझड़ हुए पादपों पर नवांकुर और पुष्पों की कलियां स्थित हैं। आच्छादित हो जाते हैं।
भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृत साहित्य में वसंत ऋतु का वर्णन इस प्रकार किया गया है। श्रीमद्भगवतगीता के दसवें अध्याय विभूति योग के पंथीसवें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ बसंत ऋतुओं को दर्शाया है जिसमें स्वयं का स्वरूप बताया गया है। उन्होंने कहा है कि- ”
बृहत्साम तथा समानं गायत्रीं समामहम्। मासहानां मार्गशीर्षोसहमृतुनां कुसमाकर:।।35।। ”
अर्थात श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘सामवेद की गे श्रुतियों में मैं बृहत्साम हूं। ‘महीने में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में मैं कुसुमाकर(बसंत) हूं।’
संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालीदास ने तो अपनी कविताओं में बसंत का उपयोग किया है। ऋतुसंहार के अध्याय 06 श्लोक 02 में वे ऋतुसंहार का वर्णन श्लोक देखें-
“द्रुम: सपुष्पा: सलिलं सपदम् स्त्रीय: सकामा: पवन: सुगंधि:।
सुखा: प्रदोषा दिवशाश्च रम्य: सर्वं प्रिये चारुतरं बसंते।।”
अर्थात्-वृक्ष लताएं पुष्पों से आच्छादित हैं। जल में कमल पुष्प खिले हुए हैं स्त्रियां कामना युक्त हो गई हैं। वायु सुगंधि से भर गई हैं। रात्रि सुखदायक हो गई हैं। अहा चतुर्दिक प्रिय बसंत फेल हो गया है।
बसंत के मौसम में रति-कामदेव का मित्र भी माना जाता है। केवल मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी भी काम करते हैं
महाकवि माघ ने ‘शिशुपालवध’ में बसंत का वर्णन करते हुए लिखा है कि:- नवपलाशपलाश्वनं पुर:स्फुटप्रागपरागतप्रजम्
मृदुलतान्तलतासंतमलोक्यत्स सुरभिं सुरभिं सुमनोभरै:।।
भगवान श्रीकृष्ण ने नए विक्रेताओं से युक्त पलाश वन में खिले पुष्प खिलाए तथा पार से पूर्ण कमलों वाले तथा पुष्प, समूहों से सुरक्षित वसंत ऋतु को देखा।
महाकवि सूरदास ने वसंत ऋतु का वर्णन इस प्रकार किया है-
ऐसे पत्र पठायो ऋतुवसंत तजहुं मन मानिन तुरंत।
कागद नवदल अंबुज पात देति कमल मसिभंर सुगत।।
तुलसीदास जी ने अपने काव्य में वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए लिखा है- “सब ऋतु ऋतुपति प्रभाउ। सतत बहे त्रिविधि बौ। जनु विहार वाटिका नृप पंच बाण की।”
वस्तुत:वसंत पंचमी वसंत के आगमन का संदेश है। इसी दिन होलिका दहन के स्थान पर झंडा गाड़ा जाता है।बसंत पंचमी संदेश है फाग कामास्टी का।
वसंत पंचमी बूढी प्रकृति के नवयौवन का संदेश लाती है। बसंत में पात विराट थूथों पर नव पल्लव और पुष्प आते हैं। अर्थात् थलचर, जलचर, नभचर, उभयचर सभी मद विह्वल हो जाते हैं। अधिसंख्य प्राणि समूह वसंत में ही अपने वंश की वृद्धि करते हैं।
हमारे सनातन धर्म में बताया गया है कि इसी दिन विद्या व वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का अवतरण/अवतरण हुआ था। जिस ब्रह्माण्ड को अपनी व वाणी मिली। न्यायप्रिय, परोपकारी राजा भोज, रामसिंह कूका का जन्मदिवस। हकीकराय का निर्वाण दिवस भी इसी पर्व पर हुआ। हमारे स्वतंत्रता सेनानी वीरों की शुभकामनाओं पर तो यह गीत जीवित ही था। ‘मां रंग दे बसंती चोला’। वसंत का रंग पीला माना जाता है। जो एक सात्विक रंग है।शास्त्रों के अनुसार यह रंग ईश्वर को प्रिय होने के कारण अत्यंत पवित्र है। इसी के लिए हमारे क्रांतिकारी क्रांतिकारियों ने अपने इसी रंग में रंगने की इच्छा प्रकट की है।
किसी समय उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में वसंत ऋतु में पंचमी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता था। कई जगह नाइट मॉल शामिल थे। परंतु प्रवास व्रिंस अवशेष जंतुओं की समृद्धि से अब यह मॉल बंद हो गए हैं। एक प्राथमिक और थी जो अब लुप्तप्राय: हो रही है। यह था गांव के औजी में प्रत्येक परिवार द्वारा जौ की बालियां और गुड़ का टुकड़ा भेट कर गांववासी अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं। वैकल्पिक समय में यह भी समाप्ति पर है। उत्तराखंड के पारंपरिक स्वयंसेवी धर्मगुरुओं को प्राचीन त्योहारों और त्योहारों में शामिल होने से बचने का काम अपने हाथ में लेना चाहिए। सरकार को इस कार्य के लिए इन योजनाओं में आर्थिक सहायता की आवश्यकता है ताकि वे त्योहारों का अनुभव बचा सकें।